घर में थीं 4 आत्माएं, परिवार पर होते थे यौन हमले, ‘द कॉन्ज्यूरिंग 4’ की असली कहानी कंपा देगी रूह।
हॉरर फिल्में जब ‘सच्ची कहानी पर आधारित’ होने का दावा करती हैं, तो डर का स्तर अपने आप बढ़ जाता है। ‘द कॉन्ज्यूरिंग’ फ्रैंचाइजी इसी फॉर्मूले पर बनी है, जो पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर्स एड और लोरेन वॉरेन के असली केस फाइलों पर आधारित है। हाल ही में रिलीज हुई ‘द कॉन्ज्यूरिंग: लास्ट राइट्स’ भी एक ऐसी ही सच्ची और रहस्यमयी घटना पर आधारित है, जिसकी गुत्थी आज तक कोई पूरी तरह नहीं सुलझा पाया।
स्मर्ल परिवार की कहानी
यह कहानी 1973 में पेंसिल्वेनिया के वेस्ट पिट्सटन में रहने वाले जैक और जेनेट स्मर्ल के परिवार की है। बाढ़ में अपना घर खोने के बाद वे एक नए डुप्लेक्स घर में शिफ्ट हुए। शुरुआत में सब कुछ ठीक था, लेकिन 1985 आते-आते घर में अजीबोगरीब घटनाएं होने लगीं।
डरावनी और हिंसक घटनाएं
शुरुआत में औजारों का गायब होना, बिजली का चले जाना और घर में अजीब गंध आने जैसी घटनाएं हुईं। लेकिन जल्द ही ये घटनाएं हिंसक हो गईं।
परिवार ने दावा किया कि एक लटकती हुई लाइट उनकी बच्ची पर गिर गई, उनके पालतू कुत्ते को दीवार से फेंका गया और बेटियों को सीढ़ियों से नीचे धकेला गया। जैक स्मर्ल ने तो यहां तक आरोप लगाया कि एक शैतानी साये ने उनका यौन उत्पीड़न किया, जबकि जेनेट ने एक ‘सक्यूबस’ (Succubus) द्वारा हमले का दावा किया।
वॉरेन कपल की जांच
कैथोलिक चर्च से मदद न मिलने पर, परिवार ने 1986 में एड और लोरेन वॉरेन से संपर्क किया। वॉरेन कपल ने अपनी जांच में पाया कि घर में चार आत्माएं थीं—एक बूढ़ी औरत, एक हिंसक युवती, एक मृत व्यक्ति और एक शैतान (Demon) जो इन तीनों को नियंत्रित कर रहा था।
वॉरेन ने ऑडियो टेप, तापमान में अचानक गिरावट और शीशों पर धमकी भरे संदेश मिलने जैसे सबूत इकट्ठा करने का दावा किया। हालांकि, उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद वे उस शैतानी ताकत को पूरी तरह से घर से नहीं निकाल पाए।
एक अनसुलझी गुत्थी
एड वॉरेन ने बाद में स्वीकार किया कि यह उन कुछ मामलों में से एक था जिसे वे कभी पूरी तरह से हल नहीं कर पाए। हालांकि, बाद में पास के एक चर्च के पादरी ने दावा किया कि उनकी प्रार्थनाओं से वह बुराई दूर हो गई।
1987 में स्मर्ल परिवार ने वह घर बेच दिया। उसके बाद से वहां रहने वाले किसी भी परिवार ने कोई असामान्य घटना महसूस नहीं की। लेकिन यह मामला आज भी एक रहस्य बना हुआ है, जिस पर विश्वासी और संशयवादी दोनों के अपने-अपने तर्क हैं।