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Haq Movie Review: Emraan Hashmi और Yami Gautam की दमदार फिल्म, शाह बानो केस पर आधारित एक साहसी कोर्टरूम ड्रामा!

यामी गौतम और इमरान हाशमी अपनी फिल्म 'हक़' के एक कोर्टरूम सीन में।

'हक़' शाह बानो केस से प्रेरित एक साहसी कोर्टरूम ड्रामा है।

Haq Movie Review: Emraan Hashmi और Yami Gautam की फिल्म है एक साहसी कोर्टरूम ड्रामा, जो सच बोलने की हिम्मत करती है!

द्वारा: Fan Viral | दिनांक: 5 नवंबर, 2025

इमरान हाशमी (Emraan Hashmi) और यामी गौतम धर (Yami Gautam Dhar) की फिल्म ‘हक़ (Haq)‘ एक दिलचस्प और भावनात्मक रूप से झकझोर देने वाला कोर्टरूम ड्रामा है, जो सच बोलने की हिम्मत करता है। यह फिल्म 1980 के दशक के ऐतिहासिक शाह बानो केस से प्रेरित है, जिसने ट्रिपल तलाक और यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस छेड़ दी थी।

क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म की कहानी शाजिया बानो (यामी गौतम (Yami Gautam)) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे उसका वकील पति अब्बास खान (इमरान हाशमी (Emraan Hashmi)) तीन बच्चों के साथ घर से निकाल देता है। शाजिया को पता चलता है कि अब्बास ने सायरा (वर्तिका सिंह (Vartika Singh)) से दूसरी शादी प्यार के लिए की है, न कि मानवता के नाते जैसा उसने दावा किया था।

जब शाजिया इसका विरोध करती है, तो अब्बास उसे “तलाक तलाक तलाक” कहकर तलाक दे देता है और गुजारा भत्ता देने से इनकार कर देता है। इसके बाद शाजिया कानून का दरवाजा खटखटाती है और स्थानीय अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सात साल लंबी लड़ाई लड़ती है।

स्टार परफॉर्मेंस

यामी गौतम (Yami Gautam) एक बार फिर अपने किरदार में जान डाल देती हैं। शाजिया बानो के रूप में उनका प्रदर्शन दमदार है और उनके हाव-भाव एकदम सटीक हैं। वह इस किरदार में सहजता से ढल जाती हैं।

इमरान हाशमी (Emraan Hashmi) का किरदार थोड़ा बेहतर लिखा जा सकता था। एक चालाक वकील के बजाय, वह कई जगहों पर उलझे हुए और भ्रमित नजर आते हैं। ट्रिपल तलाक वाले सीन में भी उनका प्रदर्शन थोड़ा फीका लगता है।

सपोर्टिंग कास्ट में शीबा चड्ढा (Sheeba Chaddha) और दानिश हुसैन (Danish Husain) प्रभावशाली हैं, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान शाजिया के वकील के रूप में असीम हट्टंगडी (Aseem Hattangady) खींचते हैं।

डायरेक्शन और म्यूजिक

डायरेक्टर सुपर्ण वर्मा (Suparn Varma) ने पहली बार गंभीर सिनेमा में हाथ आजमाया है और यह एक अच्छी शुरुआत है। हालांकि, फिल्म और भी ज्यादा प्रभावशाली और हार्ड-हिटिंग हो सकती थी, जैसा कि हमने ‘मुल्क’ जैसी फिल्मों में देखा है।

विशाल मिश्रा (Vishal Mishra) के गाने फिल्म में ठीक लगते हैं, लेकिन उनमें लंबे समय तक याद रहने वाली बात नहीं है। हालांकि, कौशल किशोर (Kaushal Kishore) के गीत सरल और सार्थक हैं।

आखिरी शब्द

कुल मिलाकर, ‘हक़ (Haq)‘ साहस, मानवीय गरिमा और धर्म और कानून के बीच की बहस पर एक विचारोत्तेजक ड्रामा है। यह धार्मिक और सामाजिक समानता पर सवाल उठाती है, और सिर्फ इसीलिए इसे देखा जाना चाहिए।

हमारी ओर से साढ़े तीन स्टार! (3.5/5)

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